"प्रतिभा किसी पुरस्कार की मोहताज नहीं होती"
"प्रतिभा किसी पुरस्कार की मोहताज नहीं होती" प्रतिभा: एक स्वस्फूर्त शक्ति, जो पुरस्कार की परिधि से परे है
सामाजिक मान्यताओं और संस्थागत संरचनाओं में पुरस्कारों की भूमिका सदैव एक विशिष्ट मान्यता के रूप में स्थापित रही है। किंतु यह धारणा कि प्रतिभा पुरस्कारों की अनुकंपा से ही प्रमाणित होती है, न केवल सीमित है, बल्कि प्रतिभा की मूल प्रकृति के प्रति एक गंभीर वैचारिक भूल भी है। प्रतिभा एक अंतर्निहित, स्वस्फूर्त और आत्मनिर्भर शक्ति है, जो किसी भी बाह्य अनुमोदन या संस्थागत मान्यता की अनिवार्यता से मुक्त होती है। पुरस्कार, वस्तुतः, समाज द्वारा प्रदत्त एक सांकेतिक मान्यता है, जिसका उद्देश्य है किसी विशिष्ट उपलब्धि को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करना।
इस परिप्रेक्ष्य में, यह कहना उपयुक्त होगा किपुरस्कार प्रतिभा का सामाजिक अनुवाद हो सकता है, किन्तु उसकी व्याख्या नहीं। प्रतिभा न तो संस्थागत अनुमोदन की प्रतीक्षा करती है, न ही उसकी गति को पुरस्कार की अनुपस्थिति बाधित कर सकती है। विश्व इतिहासमें अनेक ऐसे दृष्टांत उपलब्ध हैं जहाँ असाधारण प्रतिभा, समकालीन समाज की उपेक्षा और पुरस्कारों के अभाव के बावजूद, कालजयी सिद्ध हुई है। प्रतिभा एक सतत प्रक्रिया है, कोई एकमात्र घटना नहीं। यह न तो केवल जन्मजात होती है, न ही मात्र प्रशिक्षण का उत्पाद। यह उससंधि-बिंदुपर उत्पन्न होती है जहाँप्रेरणा, संघर्ष, अनुशासन और रचनात्मकताआपस में अंतर्क्रिया करते हैं। पुरस्कारों की प्रकृति प्रायः स्थूल होती है — वे'अंत की घोषणा'करते हैं। जबकि प्रतिभासतत प्रवाहहै। वह प्रश्न पूछती है, सीमाएँ तोड़ती है, और नये प्रतिमान स्थापित करती है। अतः, उसे किसी प्रमाण-पत्र या ट्रॉफी की आवश्यकता नहीं, उसकी उपलब्धि उसकीआत्म-सिद्धिहै। क्या हमें प्रतिभा के मूल्यांकन की परिभाषा बदलनी चाहिए? आज जब समाज संस्थागत अनुमोदनों के आधार पर योग्यता का निर्धारण करता है, तो यह अत्यंत आवश्यक हो जाता है कि हमप्रतिभा के मूल्यांकन की धारणाको पुनः परिभाषित करें। पुरस्कार, सम्मान और मान्यताएँ महत्त्वपूर्ण हैं - परंतु वेअंतिम सत्य नहीं, केवल एकक्षणिक अनुग्रहहैं।प्रतिभा, स्वायत्त है।वह न स्वीकृति की आकांक्षी है, न अस्वीकृति से विचलित। वह उसअग्नि के समानहै जो स्वयं जलती है और युगों को आलोकित करती है - बिना किसी दीपशिखा की अपेक्षा के।
🔥 कभी-कभी जो सबसे अधिक चमकता है, वह मंच की रोशनी में नहीं, संघर्ष की छाया में आकार लेता है।आपका कार्य, आपकी सोच, आपकी सृजनशीलता -यही आपकी सबसे बड़ी पहचान है।